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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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"विचारों की गहराई और यात्रा के अनुभवों का संगम : मोहन राकेश का आख़िरी चट्टान तक यात्रा-वृत्तान्त"

 

आखिरी चट्टान


कन्याकुमारी। सुनहले सूर्योदय और सूर्यास्त की भूमि।

केप होटल के आगे बने बाथ टैंक के बायीं तरफ, समुद्र के अन्दर से उभरी स्याह चट्टानों में से एक पर खड़ा होकर मैं देर तक भारत के स्थलभाग की आखिरी चट्टान को देखता रहा। पृष्ठभूमि में कन्याकुमारी के मन्दिर की लाल और सफेद लकीरें चमक रही थीं। अरब सागर, हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी-इन तीनों के संगम-स्थल-सी वह चट्टान, जिस पर कभी स्वामी विवेकानन्द ने समाधि लगायी थी, हर तरफ़ से पानी की मार सहती हुई स्वयं भी समाधि-स्थित सी लग रही थी। हिन्द महासागर की ऊँची-ऊँची लहरें मेरे आसपास की स्याह चट्टानों से टकरा रही थीं। अरब सागर, हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी-इन तीनों के संगम-स्थल-सी वह चट्टान, जिस पर कभी स्वामी विवेकानन्द ने समाधि लगायी थी, हर तरफ से पानी की मार सहती हुई स्वयं भी समाधि-स्थित-सी लग रही थी। हिन्द महासागर की ऊँची-ऊँची लहरें मेरे आसपास की स्याह चट्टानों से टकरा रही थीं। बलखाती लहरें रास्ते की नुकीली चट्टानों से कटती हुई आती थीं जिससे उनके ऊपर चूरा बूँदों की जालियाँ बन जाती थीं। मैं देख रहा था और अपनी पूरी चेतना से महसूस कर रहा था-शक्ति का विस्तार, विस्तार की शक्ति। तीनों तरफ से क्षितिज तक पानी-ही-पानी था, फिर भी सामने का क्षितिज, हिन्द महासागर का, अपेक्षया अधिक दूर और अधिक गहरा जान पड़ता था। लगता था कि उस ओर दूसरा छोर है ही नहीं। तीनों ओर के क्षितिज को आँखों में समेटता मैं कुछ देर भूला रहा कि मैं मैं हूँ एक जीवित व्यक्ति, दूर से आया यात्री, एक दर्शक। उस दृश्य के बीच में जैसे दृश्य का एक हिस्सा बनकर खड़ा रहा-बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच एक छोटी-सी चट्टान। जब अपना होश हुआ, तो देखा कि मेरी चट्टान भी तब तक बढ़ते पानी में काफ़ी घिर गयी है। मेरा पूरा शरीर सिहर गया। मैंने एक नज़र फिर सामने के उमड़ते विस्तार पर ड़ाली और पास की एक सुरक्षित चट्टान पर कूदकर दूसरी चट्टानों पर से होता हुआ किनारे पर पहुँच गया।

पश्चिमी क्षितिज में सूर्य धीरे-धीरे नीचे जा रहा था। मैं सूर्यास्त की दिशा में चलने लगा। दूर पश्चिमी तट-रेखा के एक मोड़ के पीली रेत का एक ऊँचा टीला नजर आ रहा था। सोचा उस टोले पर जाकर सूर्यास्त देखूँगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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